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कौन हैं IPS सिमाला….बचपन में बनना चाहती थी हीरोइन लेकिन बन गई IPS, अब कोरोना संकट में अचानक सुर्खियों में आईं

एक दंबग अफसर के तौर पहचान रखने वाली इंडियन पुलिस सर्विस (आईपीएस) अधिकारी इन दिनों चर्चा के केंद्र बनी हुई है, चर्चा उनकी दबंगई को लेकर नहीं बल्कि उनके द्वारा लिखी गई कविता ‘मैं खाकी हूं…को लेकर हो रही है | जो इन दिनों खूब पसंद की जा रही है, आईपीएस सिमाला प्रसाद ने लॉकडाउन के दौरान एक कविता लिखी जो लोग खूब पसंद कर रहे हैं, सिमाला प्रसाद वर्तमान में आईपीएस एसोसिएशन की सचिव हैं, इसके अलावा उन्होंने बॉलीवुड की फिल्म में अभिनय भी किया है, आइए आपको बताते हैं इस महिला पुलिस अधिकारी के बारे में जो इन दिनों चर्चा का केंद्र बनी हुई है |

कौन है आईपीएस सिमाला प्रसाद
सिमाला प्रसाद साल 2010 बैच की आईपीएस अधिकारी हैं. वह मध्यप्रदेश के नक्सल प्रभावित क्षेत्र डिंडौरी की एसपी रह चुकी है, सिमाला प्रसाद के पिता डॉ भागीरथ प्रसाद पूर्व आईपीएस अधिकारी और सांसद रह चुके हैं, वहीं उनकी मां मेहरुन्निसा परवेज एक प्रसिद्धि साहित्कार हैं. जिन्हें देश के प्रतिष्ठित पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा चुका है |

सिमाला प्रसाद बचपन से ही एक आईपीएस अधिकारी बनना चाहती थी, आपको बता दें कि सिमाला प्रसाद ने आईपीएस बनने के लिए किसी भी कोचिंग संस्थान की मदद नहीं ली है. उन्होंने सेल्फ स्टडी के जरिए ये मुकाम हासिल किया है |

बॉलीवुड फिल्म कर चुकी काम
आपको जानकार हैरानी होगी सिमाला प्रसाद ने बॉलीवुड फिल्म अलिफ में भी काम किया है, उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि दिल्ली में उनकी मुलाकात फिल्म के निर्देशक जैगाम से हुई थी, जो उन्हें अपनी फिल्म के लिए किरदार की तलाश कर रहे थे. क्योंकि फिल्म समाज में एक अच्छा संदेश देती है. इसलिए उन्होंने फिल्म में काम करने के लिए हामी भरी |

पढ़ें सिमाला की कविता, मैं खाकी..

मैं खाकी…
सदा चुपचाप चली इस कर्म पथ पर
कभी किसी को जताया नहीं
कभी किसी को कहा नहीं
आज अनायास ही लगा कुछ कहूं आपसे
आज एक साथी को खो दिया मैंने
दु:ख है, नहीं रोक पाए उसको
आपको रोकने में जो लगा था वो
सिमटी बैठी है साड़ी में
वो आज अपना सब हार
फिर खड़ी होगी कल
खाकी ने थामा है उसका हाथ
फिर लौटेंगी यह नम आंखें
इस बलिदान की चमक के साथ
मन विचलित है पर हौंसला अड़िग है
फिर कस लिया है बेल्ट अपना
फिर जमा ली है सर पर टोपी अपनी
आंख मिला रखी है इस चुनौती से मैंने अपनी
लोग कहते हैं, ना दवा है ना दुआ है
यह शत्रु कुछ अजब है लेकिन मेरे पास
इससे लड़ने का हथियार भी गजब है
जीतना है, जिताना है, समझाना है, बताना है
जब मैं हूं बाहर सारे खतरे उठाए
तो आपको बाहर क्यों जाना है
इतना तो तय है, छुपना नहीं, छुपाना नहीं
जीतने के लिए हमें बस सच बताना है
थक गए होंगे सब इस रोक-टोक से
इस शत्रु से लड़ने के मेरे तौर-तरीकों से
खड़ी हूं इस तपती धूप में इन वीरान सड़कों पर
भरोसा है जल्द लौटेगी इन सड़कों की चहल-पहल
वो शोरगुल, वो लाल, पीली, हरी बत्ती का खेल
वो सिटी बसों में भागना शहर
वो मोटरसाइकिल पर रेस लगाता शहर
वो खाकी को अपना समझता शहर
एक अच्छी खबर सुनानी थी मुझे
जल्द हारेगा वो यह बताना था मुझे
जल्द खुलेंगे सभी बंद ताले
चाबियां ढूंढ़ने की जिम्मेदारी जो मैंने ले रखी है
है अंधेरा ज्यादा तो क्या, मशाल तो मैंने जला रखी है
मुस्कुराहटें अब ना रुकेंगी, हर आंसू पोंछने की
जिम्मेदारी जो मैंने ले रखी है
कभी-कभी सूखे पत्तों के पंख लगाए
मेरा मन भी उड़ जाता है घर पर
मन करता है घर में कुछ समय बिताऊं
अपनों की कुछ सुनूं , कुछ अपनी सुनाऊं
अपनों के साथ फुरसत के कुछ पल बिताऊं
लेकिन नहीं, मैं खाकी, घर पर नहीं रह सकती हूं
शपथ जो ली है, वह नहीं तोड़ सकती हूं
जानती हूं मेरी चिंता में मां ने दवाई न ली होगी
घर के ठहाकों ने मेरी कमी महसूस की होगी
रसोई नित नए प्रयोगों से सज रही होगी
घर में खेले जा रहे खेलों में
एक खिलाड़ी की कमी होगी
लेकिन खुश हूं यह सोचकर इस कैद में
आजाद हैं सब इस विपदा की बेड़ियों से अब
कहते हैं सच्चा दोस्त वही
जो हर मुश्किल में साथ दे
तलवार की मार हो या पत्थरों की बौंछार हो
हर इम्तिहान तो खामोशी से देती आई हूं
फिर कैसी शंका, क्यों आशंका
पता नहीं कितना कह पायी हूं
कितना एहसास करा पायी हूं
मैं खाकी, सदा आपका साथ देती आई हूं

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