IAS Success Story : बचपन में सहेली की पेंसिल ने छीन ली थी आंख की रोशनी,आज ब्रेल लिपि से पढ़कर बनीं देश की पहली नेत्रहीन IAS
देश की पहली दृष्टिबाधित महिला आईएएस बनने वाली महाराष्ट्र की प्रांजल पाटिल चर्चा में हैं । केरल कैडर की प्रांजल पाटिल ने सोमवार को तिरुवनंतपुरम में उपजिलाधिकारी का पदभार संभाला । वह एक ऐसी व्यवस्था बनाना चाहती हैं जिसमें हर किसी को बिना भेदभाव के अवसर मिलें ।
प्रांजल पाटिल ने एक वाक्य में अपने संघर्ष और सफलता की कहानी बता दी जब वह बोलीं कि ‘मैंने कभी हार नहीं मानी ’। 28 साल की प्रांजल का जन्म महाराष्ट्र के उल्हासनगर में हुआ। अपनी सफलता का श्रेय वे अपने मां-पिता को देती हैं, जो उन्हें हमेशा प्रेरित करते रहे।
बचपन में रौशनी चली गई
वह मात्र छह साल की थीं जब खेल-खेल में उनकी आंख में पेंसिल लग गई । यह हादसा इतना गंभीर था कि कुछ दिन बाद ही उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई। अचानक अंधेरे में चली गई दुनिया से जूझना प्रांजल के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी।
ब्रेल लिपि से पढ़ाई रखी जारी
दोनों आंखों की रोशनी जाने के बाद भी प्रांजल ने हार नहीं मानी, उन्होंने ब्रेल लिपि के जरिए पढ़ाई जारी रखी, साथ ही उन्होंने एक ऐसे सॉफ्टेवयर की मदद ली, जिसे वे सुनकर पढ़ती थीं. इस तरह वे पढ़ाई करती रहीं. तकनीक की जितना साथा मिला प्रांजल ने खुद को उतना मजबूत बनाया |
जेएनयू से पढ़ाई की
उन्होंने जवाहर लाल विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय संबंध विषय पर परास्नातक किया। फिर पीएचडी और एमफिल किया। वह कहती हैं कि वहां हर किसी में समाज के लिए कुछ करने जा जज्बा था, जिससे प्रभावित होकर उन्होंने सिविल सेवा में जाने का फैसला किया।
दूसरे प्रयास में मिली सफलता
प्रांजल को पहले प्रयास में 733 वीं रैंक हासिल हुई, रैंक सुधारने के लिए प्रांजल ने एक बार दोबारा प्रयास किया. उन्होंने दोबारा पढ़ाई शुरू की. इस बार उनकी मेहनत रंग लाई और साल 2017 में उन्होंने 124वीं रैंक हासिल की |
रेलवे के इनकार से भी हिम्मत नहीं टूटने दी
2016 में प्रांजल ने संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में 773वीं रैंक हासिल की। तब उन्हें भारतीय रेलवे खाता सेवा में नौकरी का प्रस्ताव मिला लेकिन दृष्टिहीनता के कारण उन्हें नौकरी नहीं दी गई। वे बेहद निराश थीं लेकिन उन्होंने हार मानने की जगह दोबारा प्रयास करने की ठानी। अगले साल वह 124वीं रैंक लेकर आईं और उनकी सफलता ने सभी पूर्वागृहों को जवाब दे दिया। उन्हें प्रशिक्षण अवधि के दौरान एर्नाकुलम सहायक कलेक्टर नियुक्त किया गया था।