दिल्ली वाले साहब के नाम से चर्चित प्रो पीडी खैरा का अपोलो अस्पताल में निधन….ऐसे प्रोफेसर, जो 33 साल से ऐशो-आराम छोड़ अचानकमार के जंगल में रहते थे आदिवासियों की बेहतरी के लिए
अचानकमार के बैगा आदिवासियों के लिए अपनी जीवन समर्पित करके उनके बेहतरी के लिए दशकों से कार्य कर रहे दिल्ली यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ पीडी खैरा का अपोलो अस्पताल में निधन हो गया हैं । डॉ खैरा लंबे समय से बीमारी की वजह से अपोलो अस्पताल में भर्ती थे, डॉ खैरा बीते 25 वर्ष से अधिक समय से अचानकमार के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में बच्चों को शिक्षित करने के लिए स्कूल संचालित कर रहे थे |
दिल्ली वाले साहब के नाम से चर्चित गांधीवादी प्रोफेसर खेरा अपने पेंशन की राशि से बैगा बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दीक्षा देने में लगे हुए हैं । बिलासपुर जिले के अचानकमार टाईगर रिजर्व के वनग्राम लमनी छपरवा में विनोबा भावे की तरह दिखने वाला एक शख्स जंगलों के बीच बनी झोपड़ी में पिछले 33 साल से रह रहा है. नाम है डा.प्रोफ़ेसर प्रभुदत्त खेरा, वे दिल्ली विश्वविद्यालय में 15 साल तक समाजशास्त्र पढ़ाते रहे हैं |
सन 1983-84 में एक दोस्त की शादी में बिलासपुर आना हुआ | उसी के बाद जंगल घूमने गए, वहां एक आदिवासी बच्ची को फटी पुरानी फ़्राक में बदन छिपाते देखकर उन्हें कुछ ऐसी अनुभूति हुई कि सुई धागा लेकर उसकी फ़्राक सिलने बैठ गए. इस दौरान वे वहीं रेस्ट हाउस में रुककर वहां बसने वाले बैगा जनजाति के लोगों के रहन सहन को देखते समझते रहे, इन लोगों की हालत और सरकार की बेरुखी देखकर प्रो.खेरा का मन इतना व्यथित हुआ कि उन्होंने प्रोफ़ेसर की नौकरी छोड़ दी और दिल्ली का ऐशो आराम छोड़कर लमनी के जंगलों में ही आ बसे |
अब पिछले 33 सालों से बैगा आदिवासियों की सेवा और उनका जीवन सुधार ही प्रो.पी.डी.खेरा के जीवन का उद्देश्य है. आज 80 साल की उम्र में वे संरक्षित बैगा जनजाति के बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं, महिलाओं को दासता से मुक्त करने की पहल कर रहे हैं और अंधविश्वास,टोना टोटका से उन्हें दूर कर रहे हैं |
छत्तीसगढ़ शासन से प्रोफेसर की सेवाओं को ध्यान में रखकर उनके द्वारा संचालित स्कूल को शासनाधीन किया है ।