सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ शिमला में दर्ज राजद्रोह की एफआईआर खारिज कर दी. दुआ का कहना था कि उनके यूट्यूब चैनल में केंद्र सरकार की आलोचना के चलते उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर परेशान किया जा रहा है. कोर्ट ने कहा कि केदारनाथ जजमेंट( 1962 के तहत) हर पत्रकार प्रोटेक्शन का हकदार है. इस जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह के दायरे ( 124 ए) की व्याख्या की थी. हालांकि कोर्ट ने इसके साथ ही यह मांग ठुकरा दी कि अनुभवी पत्रकारों पर राजद्रोह का केस दर्ज करने से पहले स्पेशल कमेटी से मंजूरी ली जानी चाहिए. सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा कि हर पत्रकार प्रोटेक्शन का हकदार है.
अदालत का समिति गठित करने से इंकार
हालांकि जस्टिस ललित और विनीत सरन की पीठ ने विनोद दुआ के उस आवेदन को खारिज कर दिया, जिसमें एक समिति के गठन की मांग की गई थी, जो यह सुनिश्चित करेगी कि कम से कम 10 साल के अनुभव वाले पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह से जुड़ी कोई प्राथमिकी सीधे दर्ज न की जाए. पीठ ने कहा कि दूसरी प्रार्थना के संदर्भ में कोई भी भरोसा विधायिका के क्षेत्र का अतिक्रमण होगा. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ उनके एक यूट्यूब कार्यक्रम को लेकर हिमाचल प्रदेश में भाजपा के एक स्थानीय नेता द्वारा राजद्रोह और अन्य अपराधों के आरोप में दर्ज कराई गई प्राथमिकी निरस्त करने के अनुरोध वाली याचिका पर आज फैसला सुनाया.
केदारनाथ मामले का दिया हवाला
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केदार नाथ सिंह के मामले में उसके 1962 के फैसले के अनुसार ही प्रत्येक पत्रकार की रक्षा की जाएगी. गौरतलब है कि विनोद दुआ के खिलाफ उनके यूट्यूब कार्यक्रम के संबंध में छह मई को शिमला के कुमारसेन थाने में भाजपा नेता श्याम ने प्राथमिकी दर्ज करायी थी. इससे पहले न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने पिछले साल छह अक्टूबर को दुआ, हिमाचल प्रदेश सरकार और मामले में शिकायतकर्ता की दलीलें सुनने के बाद याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. शीर्ष अदालत ने 20 जुलाई को इस मामले में विनोद दुआ को किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से प्रदत्त संरक्षण की अवधि अगले आदेश तक के लिए बढ़ा दी थी.