देश - विदेश

बदल जाएगा “भारतीय वन सेवा” का नाम, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने की “आदिवासी” शब्द जोड़ने की मांग, जानिए क्या कहा नंदकुमार साय ने

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने भारतीय वन सेवा का नाम बदलकर ‘भारतीय वन एवं आदिवासी सेवा’ रखने का प्रस्ताव दिया है । आयोग का कहना है कि आदिवासी समाज वनों की देखरेख करता है, समाज वनों में रहता है, प्रकृति की पूजा करते है, जो अपने जीवन निर्वाहन के लिए वनों पर पूर्णतया आश्रित है। और अब वे खुद को अनाथ महसूस करते हैं ।

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंदकुमार ने मीडिया से चर्चा करते हुए कहा कि आयोग के सभी सदस्यों के साथ हुई बैठक में भारतीय वन सेवा का नाम बदलकर भारतीय वन एवं आदिवासी सेवा नाम रखने का प्रस्ताव पार्टी किया गया है, अध्यक्ष साय का कहना है कि आदिवासी समाज सदियों से वनों में रहते रहे है, देश के अधिकत्तर राज्यों में उनकी संख्या अधिक होने के कारण भी आदिवासियों की कोई सुध लेने वाला नहीं है, वे जंगल में ही जीवन यापन करते है और प्रकृति पर निर्भर रहते है |

जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंदकुमार साय का कहना भारतीय वन सेवा में ‘आदिवासियों’ को शामिल करने से वनों का संरक्षण करने के साथ आदिवासियों के विकास पर भी काम करेगी। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भारतीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के तहत आने वाले वन सरंक्षण अधिनियम 1980, में वनों को सरंक्षित किया जाता है और मनुष्यों को वनों से बाहर रखने का प्रयास किया जाता है ।

नंदकुमार साय ने बताया कि आदिवासी कल्याण मंत्रालय के तहत आने वाला वन अधिकार अधिनियम, 2006 जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों को भूमि और आजीविका अधिकारों की गारंटी देता है, इसके बावजूद भी आदिवासियों को वनों से बेदखल किया जा रहा है, जंगलों में गैर आदिवासी लगातार कब्ज़ा कर रहे है | जबकि आदिवासी समाज आज भी प्रकृति की पूजा करते है, प्रकृति को अपने भगवान मानते है |

वहीं पूर्व भारतीय वन सेवा अधिकारी मनोज मिश्रा ने कहां कि जानवरों और चिड़ियों की व्यवहारों को समझने के लिए वनवासियों की मदद ली जाती है, इसके साथ ही उन्होंने बताया कि आईएफएस का गठन वन्य प्राणियों और वन संसाधनों के संरक्षण के लिए किया गया था। सरकार के कई विभाग आदिवासी कल्याण पर काम कर रहे हैं ।

Back to top button
close