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ओपी के पक्ष में जमकर खेला जा रहा है “भावनात्मक कार्ड”!….व्यक्तित्व केंद्रित चर्चा कर मुद्दों से ध्यान हटाने की तिकड़म, धीरे-धीरे अब खुलने लगी है कलई

दिनेश मिश्र/रायगढ़. बहुचर्चित आईएएस ओपी चौधरी के भाजपा प्रवेश के पश्चात वे स्वयं और भाजपा समर्थक दोनों ही समान रूप से मीडिया व सोशल मीडिया में कुछ चुनिंदा बातों को जिस तरह से उछाल रहे हैं, वह इस बात की चुगली कर रहा है कि यह सब प्रचार की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है ।

इस्तीफा त्याग या महत्वाकांक्षा
सबसे प्रमुख बात यह कही जा रही है कि उनका इस्तीफा जनहित में किया गया कोई बहुत बड़ा त्याग है । यह कथन बेहद मासूम होने के साथ ही अविश्वसनीय भी लगता है । तटस्थ रूप से विश्लेषण करें तो यह उनकी अपनी महत्वाकांक्षा या उच्चस्तरीय दबाव के कारण लिया गया एक बड़ा किंतु निहायत ही व्यक्तिगत निर्णय है। फ़िलहाल इसे उनकी लालसा भले ही न कहें लेकिन इसे कम से कम इसे कोई त्याग तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता है । उन्होंने कलेक्टरी छोड़कर सत्ता की कालीन पर पाँव रखा है ना कि विपक्ष के काँटों भरे मार्ग का चयन किया है । अतः इसे कोई संघर्ष भी नहीं कहा जा सकता है । राजनैतिक अनिश्चितता के कारण अधिक से अधिक इसे निजी तौर पर लिया गया एक जोखिमभरा निर्णय ही कहा जा सकता है, इससे अधिक कुछ भी नहीं ।

सहानुभूति उभारने का सिनेमाई अंदाज

इसमें कोई दो मत नहीं है कि श्री चौधरी ने विषम परिस्थितयों से जूझकर सफलता पायी थी।किंतु बचपन के उनके जीवन संघर्ष में पानी टपकने वाले स्कूल, अल्पायु में पिता का देहावसान, बड़ी बहन का त्याग एवं वयोवृद्ध माता जी का साहसपूर्ण निर्णय व पेंशन हेतु उनके साथ कॉलेक्ट्रेड जाने की घटना का दिल्ली से लेकर गांव की गलियों तक जिस प्रकार बार-बार उल्लेख किया जा रहा है उसे देखकर अब यह चर्चा होने लगी है कि इन घटानाओं के माध्यम से हिंदी फिल्मों की तर्ज पर एक भावुक व मार्मिक शब्द चित्र बनाया जा रहा है तथा ओ.पी.चौधरी को इस कहानी के नायक के तौर पर उभार कर आम लोगों की सहानुभूति बटोरने का प्रयास किया जा रहा है। यह चर्चा भी है कि सब कुछ उमेश पटेल को स्वाभाविक रूप से मिलने वाली सहानुभूति की काट हेतु एक पूर्वनियोजित स्क्रिप्ट के तहत किया जा रहा है।
यहाँ यह बताना समीचीन होगा कि ओ पी चौधरी के संघर्ष को तो उसी दिन मुकाम मिल गया था जिस दिन वे आई.ए.एस अधिकारी बन गये। बचपन में जो सुख उन्होंने खोया था और उनके पिता व बहन ने जो सपना उनके लिये देखा था वह सब कुछ तो कलेक्टर बनते ही उन्होंने हासिल कर लिया। उमेश पटेल ने राजनीतिक संघर्ष के पथ पर अपने पिता और बड़े भाई दोनों को खोया है। इस स्थायी व बड़ी क्षति की पूर्ति कोई भी और कभी भी नहीं कर सकता है। अपने यशस्वी पिता का खोया हुआ स्थान ,सम्मान व सपना पूरा करने का उनका संघर्ष अभी जारी है। उमेश को उसके पिता का स्थान व सम्मान दिलाकर नन्दकुमार व दिनेश पटेल के रूप में हुई बड़ी क्षति की पूर्ति करने का कृतज्ञ भाव आज भी क्षेत्रवासियों में कई अवसरों में उभरकर सामने आ जाता है। ये भावनाएँ कृत्रिम रूप से नहीं उभारी गयी हैं वरन यह स्वाभाविक जनभावना है।

केवल ओपी ही नहीं उमेश भी है उच्च शिक्षित
ओ पी के पद और उच्च शिक्षा को लेकर जो एक गर्म वातावरण बना है उसकी छाया में यह बात छिप सी जा रही है कि उमेश पटेल भी एक उच्च शिक्षित इंजीनियर व टेक्नोक्रैट रहा है। पिता की आकस्मिक मृत्यु के बाद वह भी एक बड़ी कंपनी की आकर्षक नौकरी व व्यवस्थित जीवन छोड़कर मिट्टी की सेवा हेतु वापस लौटा है।

पटेल परिवार ने की है मिट्टी की सच्ची सेवा
ओ पी चौधरी जब ये कहते हैं कि वे मिट्टी की सेवा के लिए यह दाँव खेल रहे हैं तो नैपथ्य में यह ध्वनि भी उभरती है कि अब तक के जनप्रतिनिधियों ने मिट्टी की सेवा ठीक से नहीं की है। जबकि वास्तविकता यह है कि नन्दकुमार पटेल ने पूरे क्षेत्र को इस तरह से विकसित किया है कि खरसिया विधानसभा का विकास मॉडल प्रदेश में चर्चा व ईर्ष्या का विषय रहा है। जब भी गुणवत्ता की बात होती है तो रायगढ़ के लोग खरसिया का उदारहण देकर अपने यहाँ की गुणवत्ताविहीन कार्यों को कोसते हुए देखे जाते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह रही है कि भाजपा के पितृपुरुष के गृह क्षेत्र में रहकर उन्होंने शहरी पूंजीपतियों के मुकाबले देहात के आत्मविश्वास व स्वाभिमान को जागृत व स्थापित किया तथा अंत में उनका प्राणोत्सर्ग भी इसी राजनैतिक संघर्ष को आगे बढ़ाते हुये ही हुआ। उमेश आते ही विपक्ष में रहे और उनका पहला कार्यकाल ही पूरा हुआ है अतः उनकी उपलब्द्धियाँ सीमित हो सकती हैं लेकिन तुलनात्मक रूप से जिले के अन्य क्षेत्रों से अच्छी मानी जाती हैं। संक्षेप में पटेल परिवार ने इस मिट्टी की बहुत भरपूर सेवा की है। अतः चौधरी साहब को स्लोगन की राजनीति करने की बजाय यह बताना होगा कि उनके पास क्षेत्रवासियों के क्या अभिनव योजनायें हैं और उन्हें अमलीजामा पहनाने का क्या मास्टर प्लान उनके पास है।

जुमलेबाजी से नहीं होगी वैतरणी पार
राजनीति में जब कोई बड़ी घटना होती है तो आरम्भ में कुछ दिनों तक कौतूहल के कारण नवागत के पक्ष में तरह-तरह की चर्चा करना और पूर्व स्थापित व्यक्ति के नकारात्मक पहलुओं की चर्चा करना एक सामान्य भारतीय मानसिकता है। सभी दल और प्रत्याशी अपने आपको स्थापित करने हेतु उपलब्ध अवसरों व तथ्यों का इस्तेमाल भी जरूर करते हैं। लेकिन ओ पी को लेकर जो वातावरण बनाया जा रहा है उसमें व्यक्तित्व को हावी करने की कोशिश जरूरत से ज्यादा दिखाई दे रही है जबकि वास्तविक मुद्दे पीछे छूट जा रहे हैं । ओ पी चौधरी जनसेवा को लेकर लगातार जो प्रतिबद्धता का दावा कर रहे हैं उसे प्रमाणिकता प्रदान करने हेतु इन भावनात्मक बातों से ऊपर उठकर उन्हें मुद्दों की ओर लौटना होगा अन्यथा केवल जुमलेबाजी या भावनात्मक बातों के सहारे वे चुनावी वैतरणी को पार कर लेंगे,यह सोचना बहुत बड़ी राजनैतिक भूल होगी।

अभिमन्यु वध होगा या सत्ता की पराजय?
भाजपा के इस प्रयोग को अब पिता व बड़े भाई की अनुपस्थिति में अकेला पाकर सत्ता की धनवान ताकतों द्वारा उमेश पटेल को घेरने की कुत्सित योजना के रूप में भी देखा जा रहा है । इस युद्ध में एक तरफ अकेला और निहत्था उमेश पटेल दिख रहा है तथा दूसरी ओर सत्ता की असीमित शक्तियों से लैस महारथियों की पूरी टोली मोर्चे पर उतर रही है। अतः जनसामान्य में इस मुकाबले को महाभारत के अभिमन्यु प्रसंग से जोड़कर रसप्रद चर्चाएं होने लगी है ।

देखना यह है कि इस जनयुद्ध में अभिमन्यु का वध होता है या वह इतिहास को पलटकर जनशक्ति द्वारा सत्तासीन धनकुबेरों को परास्त करता है।

 

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