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बड़ी खबर : वर्षा डोंगरे का निलंबन रद्द, सहायक जेल अधीक्षक कोरबा बनाया गया….सोशल मीडिया में टिप्पणी के बाद रमन सरकार ने किया था सस्पेंड… 2003 में पीएससी घोटाले को लेकर कोर्ट में लड़ रही लड़ाई

फेसबुक पर बस्तर में आदिवासियों पर सुरक्षाबलों द्वारा किए जा रहे अत्याचार को लेकर फेसबुक पर पोस्ट शेयर करने के बाद जेल सहायिका वर्षा डोंगरे को तत्कालीन बीजेपी सरकार ने निलंबित कर दिया था, दो साल बाद आज वर्षा डोंगरे को बड़ी जीत मिली है, राज्य सरकार ने वर्षा के संस्पेंशन को रद्द करते हुए उन्हें कोरबा जेल का सहायक अधीक्षक बनाया गया है |

बता दें कि साल 2017 में वर्षा डोंगरे ने बस्तर के जेल में आदिवासियों पर सुरक्षाबलों द्वारा किए जा रहे अत्याचार को लेकर फेसबुक में एक पोस्ट शेयर किया था, जिसके बाद प्रदेश में हड़कंप मच गया था, वर्षा डोंगरे ने पूर्व बीजेपी सरकार पर गंभीर आरोप लगाने के साथ ही तीखी हमला किया था, इस पोस्ट के बाद तत्कालीन बीजेपी सरकार ने वर्षा डोंगरे को निलंबित कर दिया था।

ये बात लिखी थी वर्षा डोंग्रेस फेसबुक पर :
मुझे लगता है कि एक बार हम सबको अपना गिरेबान झांकना चाहिए. सच्चाई खुद-ब-खुद सामने आ जाएगी. घटना में दोनों तरफ से मरने वाले अपने देशवासी है. भारतीय हैं, इसलिए कोई भी मरे तकलीफ हम सबको होती है. पूंजीवादी व्यवस्था को आदिवासी क्षेत्रों में लागू करवाना. उनके जल-जंगल-जमीन को बेदखल करने के लिए गांव का गांव जला देना, आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार, आदिवासी महिला नक्सली हैं या नहीं इसका प्रमाण पत्र देने के लिए उनका स्तन निचोड़कर दूध निकालकर देखा जाता है. टाइगर प्रोजेक्ट के नाम पर आदिवासियों को आदिवासियों को जल-जंगल-जमीन से बेदखल करने की रणनीति बनती है, जबकि संविधान पांचवीं अनुसूची के अनुसार सैनिक सरकार को कोई हक नहीं बनता आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन को हड़पने का.आखिर ये सब कुछ क्यों हो रहा है? नक्सलवाद का खात्मा करने के लिए. लगता नहीं. “सच तो यह है कि सारे प्राकृतिक संसाधन इन्हीं जंगलों में हैं जिसे उद्योगपतियों और पूंजीपतियों को बेचने के लिए खाली करवाना है. आदिवासी जल-जंगल-जमीन खाली नहीं करेंगे क्योंकि यह उनकी मातृभूमि है. वे नक्सलवाद का अंत तो चाहते हैं, लेकिन जिस तरह से देश के रक्षक ही उनकी बहू-बेटियों की इज्जत उतार रहे हैं, उनके घर जला रहे हैं. उन्हें फर्जी केसों में चारदीवारी में सड़ने के लिए भेजा जा रहा है, आखिर वो न्याय प्राप्ति के लिए कहां जाए? ये सब मैं नहीं कह रही बल्कि सीबीआई रिपोर्ट कहती है. सुप्रीम कोर्ट कहती है. जमीनी हकीकत कहती है. जो भी आदिवासियों की समस्या का समाधान का प्रयत्न करने की कोशिश करते हैं, चाहे वह मानवाधिकार कार्यकर्ता हों, चाहे पत्रकार…उन्हें फर्जी नक्सली केसों में जेल में ठूंस दिया जाता है. अगर आदिवासी क्षेत्रों में सब कुछ ठीक हो रहा है तो सरकार इतना डरती क्यों है? ऐसा क्या कारण कि वहां किसी को भी सच्चाई जानने के लिए जाने नहीं दिया जाता है.”

“मैंने स्वयं बस्तर में 14 से 16 साल की माड़िया- मुड़िया आदिवासी बच्चियों को देखा था, जिन्हें थाने में महिला पुलिस को बाहर कर नग्न कर प्रताड़ित किया गया था. उनके दोनों हाथों की कलाइयों और स्तनों पर करंट लगाया गया था. जिसके निशान मैंने स्वयं देखे. मैं भीतर तक सिहर उठी थी कि इन छोटी-छोटी आदिवासी बच्चियों पर थर्ड डिग्री टॉर्चर किए गए. मैंने डॉक्टर से उचित उपचार और आवश्यक कार्रवाई के लिए कहा.”उन्होंने लिखा है, “हमारे देश का संविधान और कानून किसी को यह कतई हक नहीं देता कि किसी के साथ अत्याचार करें. इसलिए सभी को जागना होगा. राज्य में पांचवीं अनुसूची लागू होनी चाहिए. आदिवासियों का विकास आदिवासियों के हिसाब से होना चाहिए. उन पर जबरदस्ती विकास न थोपा जाए. जवान हो किसान सब भाई-भाई है. अत: एक-दूसरे को मारकर न ही शांति स्थापित होगी और न ही विकास होगा. संविधान में न्याय सबके लिए है.”

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