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जिनपर कभी रहता था प्रदेश जिताने का जिम्मा, वो दिग्गज कांग्रेसी अपनी ही सीट नहीं बचा पाए….मोदी की ‘सुनामी’ में उड़ गए कांग्रेस के 9 पूर्व मुख्यमंत्री

लोकसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों के लिए करारा झटका साबित हुए, इस चुनाव में कांग्रेस के ऐसे दिग्गज भी चुनाव हार गए जो दशकों से अपनी पार्टी के सबसे मजबूत नेता माने जाते थे, उनके पास अपनी सीट जीतने की ही नहीं बल्कि सूबे की सीटों पर प्रभाव डालने की जिम्मेदारी थी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अपने गढ़ अमेठी में हार का सामना करना पड़ा तो कांग्रेस के 9 पूर्व मुख्यमंत्री भी मोदी लहर में जीत को तरस गए, लोकसभा में कांग्रेस दल के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को अपने सियासी सफर में पहली बार हार का मुंह देखना पड़ा |

दिग्विजय सिंह – दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश के दस साल से मुख्यमंत्री रहे है, देश की राजनीति में उनका बहुत बड़ा नाम है, इस बार दिग्विजय सिंह को करारी हार का सामना करना पड़ा | भोपाल से इस बार उनके सामने थीं भाजपा की साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, वो मालेगांव बम धमाके की आरोपी हैं, लेकिन भाजपा के राष्ट्रवाद के नैरेटिव और दिग्विजय के 10 सालों के शासन पर उठाए सवालों ने भाजपा की जीत का रास्ता खोल दिया, साध्वी प्रज्ञा ने दिग्विजय सिंह को 3 लाख 8 हजार 529 वोटों से हराया है |

शीला दीक्षित – शीला दीक्षित देश की राजधानी दिल्ली के मुख्यमंत्री रह चुकी है, तीसरी बार उन्हें हार का समाना करना पड़ा शायद ये उनके करियर का आखिरी चुनाव भी था, केरल की राज्यपाल रह चुकी  शीला दीक्षित  इस समय वो दिल्ली कांग्रेस की अध्यक्ष हैं. उन्हें हराने वाले हैं भाजपा के दिल्ली प्रदेशाध्यक्ष मनोज तिवारी. अंतर भी कम नहीं, पूरे साढ़े तीन लाख (363969) से ज्यादा वोटों से हारी हैं |

भूपेंद्र सिंह हुड्डा – चार बार सांसद और 10 साल हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा में डूबती कांग्रेस को सहारा देने के लिए सोनीपत से लड़े, सोनीपत इनकी अपनी ज़मीन नहीं थी, हालांकि बड़े-बड़े नेताओं के लिए किसी दूसरी सीट पर लड़ना उतना भी मुश्किल नहीं होता. खैर, हुड्डा ना पार्टी को बचा सके, ना खुद की सीट. सोनीपत से रमेश चंद्र कौशिक ने 1 लाख 62 हजार 759 वोटों से हराया है |

सुशील कुमार शिंदे – एक समय में सुशील कुमार शिंदे देश के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से थे. यूपीए- 2 में क़रीब 2 साल के लिए देश के गृह मंत्री बने. इससे पहले थोड़े समय के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रहे. इस बार कांग्रेस की ओर से सोलापुर से चुनाव लड़ा था. हार गए. डेढ़ लाख से ज्यादा (154887) वोटों से हारे हैं |

मुकुल संगमा – मेघालय के 8 साल तक मुखिया रहे मुकुल संगमा को भी इस बार हार का सामना करना पड़ा. उन्हें हराया आगाथा संगमा ने. अगाथा यूपीए-2 का हिस्सा थीं. उन्हें ग्रामीण विकास का राज्य मंत्री बनाया गया था. उस समय वो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की नेता थीं. बाद में पार्टी छोड़ी और इस बार नेशनल पीपल्स पार्टी की टिकट पर उन्होंने सूबे के मुख्यमंत्री रहे मुकुल संगमा को हराया. वोटों का अंतर था 63 हजार 772 |

हरीश रावत – उत्तराखंड में कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेता. सूबे में कुल 5 सीटें हैं. भाजपा ने सभी सीटें जीती हैं. यानी ना रावत खुद जीते ना पार्टी. नैनीताल -उधम सिंह नगर सीट से अजय भट्ट ने हरीश रावत को 3 लाख 36 हजार 704 वोटों से हराया है |

नबाम तुकी – नबाम उस सूबे के मुखिया रहे जहां तक एक समय भाजपा का जीत हासिल करना भी बेमानी लगता था. अरुणाचल प्रदेश. आज भाजपा ने वहां की 2 लोकसभा सीटों पर कब्जा जमा लिया है. साथ ही सूबे में विधानसभा के चुनाव में बढ़त हासिल करके राज्य में सरकार बना ली है. नबाम तुकी को हराया है किरेन रिजिजू ने. वोटों का अंतर भी भारी था. पूरे 1 लाख 12 हजार 658 वोट |

वीरप्पा मोइली – वीरप्पा मोइली भी कांग्रेस की ओर से कर्नाटक के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. यूपीए-2 के दौरान इनका पोर्टफॉलियो बदलता रहा. कई अहम मंत्रालय मिले. इस बार भी वो अपनी पुरानी सीट चिकबल्लपुर से लड़ रहे थे. 2014 में यहीं से जीते थे. तब मार्जन सिर्फ 9520 वोटों का था. लेकिन इस बार चुनाव हारे और मार्जन भी कम नहीं है. पूरे 1 लाख 82 हजार 110 वोटों से हारे हैं |

अशोक चव्हाण – अशोक चव्हाण महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. मौजूदा समय में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी हैं. 2014 में नांदेड़ से सांसद चुने गए थे. लेकिन इस बार चुनाव हार गए. उन्हें हराया भाजपा के प्रतापराव पाटिल ने. मार्जिन रहा 42 हजार 826 वोटों का |

 

 

 

 

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